Tuesday, September 25, 2018

कुछ घंटे गुजारिए न जेल में

युक्त राष्ट्र द्वारा खुशहाल देशों की जारी सूची में भारत का पाक, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश व चीन से पीछे रहना कई सवालों को जन्म देता है। विकास के तमाम दावों के बीच खुशी कहीं गुम हो गयी है। प्राकृतिक आपदाओं व रोग को नजरअंदाज कर दें तो शायद ही कोई भारतीय होगा, जिसने अपनी दो-तीन पीढ़ियों के मुकाबले तरक्की न की हो। मगर आज हर भारतीय पहले की अपेक्षा असंतोष से घिरा है। शायद इसका कारण असुरक्षा, भ्रष्टाचार, महंगाई, बढ़ती आबादी हो सकते हैं। जिस त्याग, संतोष व योग की सोच ने भारत को पूरी दुनिया में विशिष्ट पहचान दी, आज उसी से आम भारतीय परहेज करने लगा है।
ई-शिक्षा का प्रसार
आज संचार तकनीकी का जमाना है। प्रत्येक व्यक्ति घर बैठे देश-दुनिया की सूचना जान सकता है। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था ऐसी नहीं है कि ई-साक्षरता को बढ़ावा दिया जा सके। हालांकि प्रदेश और केंद्र की सरकारें युवाओं के बीच ई-साक्षरता को प्रोत्साहित करने के लिए गम्भीरता से प्रयास कर रही हैं, लेकिन ज़रूरत इन प्रयासों में और तेज़ी लाने की है। यदि देश को उन्नति और खुशहाली की राह पर चलना है तो ई-साक्षरता की ओर तेज़ी से कदम बढ़ाने होंगे।
दीपिका, पीयू, चंडीगढ़
बंद के जख्म
एक दिन का भारत बंद हो गया। अपने देश में इस प्रकार के विरोध के स्वर को बुलंद करने का यह नायाब हथियार न जाने कितने जख्म देगा। इस प्रकार के बंद से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान तो समूचे देश का होता है। आरक्षण की मांग हो या या अन्य विरोध, यह संघर्ष ही तो राजनीति को ऊर्जा देता है। नतीजा खेमों में बंटे हम राजनीति के हवन कुंड में बार-बार अपनी ही आहुति देते हैं। मगर राजनीति खुद जिन्दा रहने के लिए विकृत परम्पराओं को मरने नहीं देती।
एमके मिश्रा, रातू, रांची, झारखण्जी नहीं, यह जेल पर्यटन का विज्ञापन नहीं है। जेल पर्यटन अभी शुरू नहीं हुआ है। अभी उसकी योजना बन ही रही है। उम्मीद करनी चाहिए कि यह योजना पांच साला नहीं होगी। वैसे भी योजना आयोग अब खत्म हो चुका है। अब योजनाएं नहीं, नीतियां बनती हैं। जेल से डरने की जरूरत नहीं है।
वैसे भी एडवेंचर और थ्रिल भी पर्यटन का हिस्सा होते ही हैं। पर्यटन भी तो अब तरह-तरह के हो गए हैं। शासक पार्टी से पूछो तो वह विपक्ष के नेता के ही कितनी तरह के पर्यटन गिना देगी। अभी कुछ वर्ष पहले यह योजना बनी थी कि चंबल की उन जगहों को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित किया जाएगा, जहां कभी मान सिंह और मोहर सिंह जैसे नामी-गिरामी डाकू विचरण करते थे। थ्रिल का एलीमेंट नहीं है क्या? फिर पिछले दिनों यह खबर आयी कि अब जेल पर्यटन शुरू होने जा रहा है। काला पानी तो खैर पहले ही पर्यटन स्थल के रूप में विख्यात हो चुका है। पर अब काला पानी जाने की जरूरत नहीं है। आप अपने यहां भी जेल का लुत्फ ले सकते हैं। बस पैसा चुकाइए और जेल की हवा खाइए।
जी हां, इधर यूपी से खबर यह है कि जिनकी कुंडली में जेल योग है, वे अपनी मर्जी से कुछ घंटे लॉकअप में रहकर इसका निराकरण कर सकते हैं। किसी पंडित-पुरोहित से, किसी तांत्रिक से यज्ञ-हवन कराने की कोई जरूरत नहीं। बस कुछ घंटे लॉकअप में बिताइए, यह जेल योग से बचने का एकदम पक्का उपाय है। इसके लिए बस एक प्रार्थना पत्र दीजिए और जिला प्रशासन आपको लॉकअप की सुविधा मुहैया करा देगा।
अब उन नेताओं को डरने की कोई जरूरत नहीं, जिन्हें जेल जाने का डर सताता रहता है। अगर जेल योग का यह तोड़ पहले ही निकल आता तो उन बाबाओं को भी जेल नहीं जाना पड़ता जो बलात्कार और न जाने किस-किस आरोप में जेल में हैं। पर अगर उन्हें यह उपाय ही नहीं सूझा तो वे किस बात के बाबा हैं भई। खैर, अब यह तोड़ निकल आया है तो तमाम बलात्कारी और अपराधी अवश्य ही यह उपाय अपना सकते हैं। बैंकों का पैसा लेकर भाग जाने वालों को भी अब चिंता करने की जरूरत नहीं। बस कुछ घंटे लॉकअप में बिताइए और सब रफा-दफा।
अब समझिए कि माफियाओं की तो बन आएगी। वे चंद घंटे लॉकअप में बिताकर अपना माफिया राज चला सकते हैं। पर चिंता असल में यह है कि अब कानून और व्यवस्था का क्या होगा? अदालतें क्या करेंगी? वकीलों का क्या होगा? अगर किसी को जेल भेजने की सजा दे दी, तो कहीं वह ऐंठ कर उलटा यही न कह दे-मेरा तो जेल योग का निराकरण हो चुका है, आप मुझे कैसे जेल भेज सकते हैं?

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