रांस से 36 रफ़ाएल लड़ाकू विमान ख़रीदने का समझौता काफ़ी विवादित हो गया है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार
पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस समझौते में घपले का आरोप लगा रही है.
इस समझौते को रोकने के लिए मनोहर लाल शर्मा नाम के एक वक़ील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.
सुप्रीम
कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया है और अगले हफ़्ते मुख्य न्यायाधीश
दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच सुनवाई करेगी. इस बेंच में जस्टिस
दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ होंगे.
इन सब विवादों के बीच भारतीय वायु सेना के उपप्रमुख एसबी देव ने
समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा है कि रफ़ायल एक बेहतरीन लड़ाकू विमान है और
इसकी क्षमता अभूतपूर्व है.
एसबी देव ने यह भी कहा कि जो इस डील की
आलोचना कर रहे हैं उन्हें नियमों और समझौते की प्रक्रिया को जानना चाहिए.
उन्होंने कहा, ''यह बेहतरीन लड़ाकू विमान है. इसकी क्षमता ज़बर्दस्त है और
हमलोग इसका इंतज़ार कर रहे हैं.'' या रफ़ाएल वाक़ई बेहतरीन लड़ाकू विमान है? क्या इसके आने से भारतीय सेना
की ताक़त बढ़ेगी? क्या चीन और पाकिस्तान से युद्ध के हालात में रफ़ाएल
कारगर साबित होगा?
द इंस्टीट्यूट फ़ॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस
(आईडीएसए) में फ़ाइटर जेट पर विशेषज्ञता रखने वाले एक विश्लेषक का कहना है,
''कोई भी लड़ाकू विमान कितना ताक़तवर है यह उसकी सेंसर क्षमता और हथियार
पर निर्भर करता है. मतलब कोई फ़ाइटर प्लेन कितनी दूरी से देख सकता है और
कितनी दूर तक मार कर सकता है. ज़ाहिर है इस मामले में रफ़ाएल बहुत ही
आधुनिक लड़ाकू विमान है. भारत ने इससे पहले 1997-98 में रूस से सुखोई
ख़रीदा था. सुखोई के बाद रफ़ाएल ख़रीदा जा रहा है. 20-21 साल के बाद यह डील
हो रही है तो ज़ाहिर है इतने सालों में टेक्नॉलजी बदली है.''
वो
कहते हैं, ''कोई फ़ाइटर प्लेन कितनी ऊंचाई तक जाता है यह उसकी इंजन की
ताक़त पर निर्भर करता है. सामान्य रूप से फ़ाइटर प्लेन 40 से 50 हज़ार फ़िट
की ऊंचाई तक जाते ही हैं, लेकिन हम ऊंचाई से किसी लड़ाकू विमान की ताक़त
का अंदाज़ा नहीं लगा सकते हैं. फ़ाइटर प्लेन की ताक़त मापने की कसौटी
हथियार और सेंसर क्षमता ही है.''
एशिया टाइम्स में रक्षा और विदेश नीति के विश्लेषक इमैनुएल स्कीमिया ने नेशनल इंटरेस्ट में
लिखा है, ''परमाणु हथियारों से लैस रफ़ाएल हवा से हवा में 150 किलोमीटर तक
मिसाइल दाग सकता है और हवा से ज़मीन तक इसकी मारक क्षमता 300 किलोमीटर है.
कुछ भारतीय पर्यवेक्षकों का मानना है कि रफ़ाएल की क्षमता पाकिस्तान की
एफ़-16 से ज़्यादा है.'' या भारत पाकिस्तान से इस लड़ाकू विमान के ज़रिए युद्ध जीत सकता है?
आईडीएसए से जुड़े एक विशेषज्ञ का कहना है, ''पाकिस्तान के पास जो फ़ाइटर
प्लेन हैं वो किसी से छुपे नहीं हैं. उनके पास जे-17, एफ़-16 और मिराज हैं.
ज़ाहिर है कि रफ़ाएल की तरह इनकी टेक्नॉलजी एडवांस नहीं है. पर हमें यह
समझना चाहिए कि अगर भारत के पास 36 रफ़ाएल हैं तो वो 36 जगह ही लड़ाई कर
सकते हैं. अगर पाकिस्तान के पास इससे ज़्यादा फाइटर प्लेन होंगे तो वो
ज़्यादा जगहों से लड़ाई करेगा. मतलब संख्या मायने रखती है.''
पूर्व
रक्षा मंत्री और वर्तमान में गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर भी रफ़ाएल
समझौते को आगे बढ़ाने में शामिल रहे हैं. पर्रिकर ने इसी साल जुलाई में कहा
था कि रफ़ायल के आने से भारत, पाकिस्तान की हवाई क्षमता पर भारी पड़ेगा.
पर्रिकर
ने इसी साल 12 जुलाई को गोवा कला और साहित्य उत्सव में कहा था, ''इसका
टारगेट अचूक होगा. रफ़ाएल ऊपर-नीचे, अगल-बगल यानी हर तरफ़ निगरानी रखने में
सक्षम है. मतलब इसकी विजिबिलिटी 360 डिग्री होगी. पायलट को बस विरोधी को
देखना है और बटन दबा देना है और बाक़ी काम कंप्यूटर कर लेगा. इसमें पायलट
के लिए एक हेलमेट भी होगा.'' र्रिकर ने कहा था, ''1999 के करगिल युद्ध में भारतीय वायु सेना
पाकिस्तान पर इसलिए हावी रही थी क्योंकि भारत की मिसाइलों की पहुंच एसयू-30
और मिग-20 के साथ 30 किलोमीटर तक थी. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान की पहुंच 20
किलोमीटर तक ही थी. इसलिए हम आगे रहे. हालांकि 1999 से 2014 के बीच
पाकिस्तान ने अपनी क्षमता को बढ़ाकर 100 किलोमीटर तक कर लिया जबकि भारत इस
दौरान अपनी पहुंच 60 किलोमीटर तक ही बढ़ा पाया. मतलब हमलोग अभी ख़तरे में
हैं. पाकिस्तानी लड़ाकू विमान हम पर हमले करेंगे तो हम पलटवार नहीं कर
पाएंगे. रफ़ाएल आने के बाद हमारी पहुंच 150 किलोमीटर तक हो जाएगी.''
रक्षा
विश्लेषक राहुल वेदी का कहना है कि रफ़ाएल से भारतीय एयर फ़ोर्स की ताक़त
बढ़ेगी, लेकिन इसकी संख्या बहुत कम है. बेदी का मानना है कि 36 रफ़ाएल अंबाला और पश्चिम बंगाल के हासीमारा स्क्वाड्रन में ही खप जाएंगे.
वो कहते हैं, ''दो स्क्वाड्रन काफ़ी नहीं हैं. भारतीय वायु सेना की 42
स्क्वाड्रन आवंटित हैं और अभी 32 ही हैं. जितने स्क्वाड्रन हैं उस हिसाब से
तो लड़ाकू विमान ही नहीं हैं. हमें गुणवत्ता तो चाहिए ही, लेकिन साथ में
संख्या भी चाहिए. अगर आप चीन या पाकिस्तान का मुक़ाबला कर रहे हैं तो आपको
लड़ाकू विमान की तादाद भी चाहिए.''
वो कहते हैं, ''चीन के पास जो
फ़ाइटर प्लेन हैं वो हमसे बहुत ज़्यादा हैं. रफ़ाएल बहुत अडवांस है, लेकिन
चीन के पास ऐसे फ़ाइटर प्लेन पहले से ही हैं. पाकिस्तान के पास एफ़-16 है
और वो भी बहुत अडवांस है. रफ़ाएल साढ़े चार जेनरेशन फ़ाइटर प्लेन है और
सबसे अडवांस पांच जेनरेशन है.''
राहुल वेदी कहते हैं, ''रफ़ाएल हमें
बना बनाया मिला है. इसमें टेक्नॉलजी ट्रांसफ़र नहीं है. रूस के साथ जो डील
होती थी उसमें वो टेक्नॉलजी भी देता था. हम इसी दम पर 272 सुखोई विमान बना
रहे हैं और लगभग फ़ाइनल होने के क़रीब हैं. हमारी क़ाबिलियत तकनीक का दोहन
करने के मामले में बिल्कुल ना के बराबर है.''
कई रक्षा विश्लेषकों
का कहना कि भारत की सेना के आधुनीकीकरण की रफ़्तार काफ़ी धीमी है. समाचार
एजेंसी एएफ़पी को दिए इंटरव्यू में रक्षा विश्लेषक गुलशन लुथरा
ने कहा था, ''हमारे लड़ाकू विमान 1970 और 1980 के दशक के हैं. 25-30 साल
के बाद पहली बार टेक्नॉलजी के स्तर पर लंबी छलांग है. हमें रफ़ाएल की
ज़रूरत थी.''
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